भारत की तकलादु शिक्षा नीति ने 10th के छात्र की हत्या की। 94 % गुणों से पास होने वाला छात्र जब आत्महत्या करता है? उस्मानाबाद में देवलाली गाँव से अक्षय शहाजी देवकर इस छात्र ने 10th कक्षा में 94 % अंक हासिल किए लेक़िन उसको आगें की शिक्षा लेने के लिए किसी भी महाविद्यालय में दाखिला नही मिला ओऱ साथ ही किसान के घर से होने की वजह से मुह बोली रक़म नही भर सका तो उस छात्र ने आत्महत्या करना सही समझा. यह घटना में आज सुबह से सोशल मिडियापर सुन/पढ़ रहा हु। इस घटना के साथ आत्महत्या का कारण मराठा आरक्षण न मिलना भी बताया जा रहा है। आज में पहली बार आरक्षण को लेकर कोई बात कहने जा रहा हु। शायद आरक्षण इसका एक कारण हो भी सकता है लेक़िन क्या आरक्षण मिलने के बाद भी यह छात्र आगे जकर इस व्यवस्था में आरक्षण लेकर टिक पाता? मेरी पूछो तो नहीं! उससे अच्छा तो आत्महत्या करना सही है। इसका मतलब यह नही की में आत्महत्या का समर्थन या फ़िर आरक्षण का विरोध कर रहा हु। आरक्षण एक तरह का प्रतिनिधित्व है जो शिक्षा, राजनीति या फ़िर रोज़गार में हर उस जाती को आरक्षण के तहत उस जाती को समुदाय को प्रतिनिधित्व करने का मौका देता है। अगर सिर्फ़ आरक्षण पर बात करनी हो तो अलग से बात हो सकती है। लेक़िन यह जो 10 वी के छात्र ने उच्चशिक्षा न मिल पाने के तहत आत्महत्या की है यह एक शैक्षणिक हत्या है जो हर रोज़ हर स्तर पर होती दिखाई देती है। तो फ़िर सिर्फ़ आरक्षण न होना इसका कारण नही है तो ओऱ क्या कारण हो सकते है? सबसे पहले तो भारत की तकलादु शिक्षा नीति ओऱ तकलादु शिक्षा, दूसरा शिक्षा का खाजगी करन, विद्यालयो को दी जाने वाली स्वायत्तता, शिक्षा का ब्राम्हणी करण, बढ़ता फ़ासिजम आदि कईसारे कारणों को गौर किया जा सकता है। मुझे याद है फ़रवरी के पहले हफ़्ते में दिल्ली में डॉ. अनिल सदगोपाल इनके नेतृत्व में भारी मात्रा से देश के विविध राज्यो के लोग शिक्षा के कुछ मांगो को रखने के लिए दिल्ली में इकट्ठा हुवे थे। उस आंदोलन में मैने भी हिस्सा लिया था, उस आंदोलन का नाम था "शिक्षा हुंकार मार्च" दिल्ली उसमें कईसारी मांगे थी उसीमें K.G TO P.G तक कि शिक्षा मुफ़्त ओऱ सख्ती की हो साथ ही शिक्षा का खाजगी करण में बंदी आदि मांगे गौर करने लायक थी। मेरा कहना यह है कि अगर भारत की शिक्षा नीति को मजबूत बनाया जाए, शिक्षा में खाजगी करण को बंद किया जाए, ओऱ सरकार शिक्षा को अपनी जबाबदारी समझे ओऱ शिक्षा का सरकारी करण किया जाए, प्राथमिक शिक्षा के साथ साथ उच्च शिक्षा पर होने वाला ख़र्च को बढ़ाया जाए ओऱ जो भी बदलाव जरूरी वह तमाम बदलाव किए जाएंगे तो शायद अक्षय जैसे कई छात्र को शिक्षा न मिलने पर आत्महत्या न करनी पड़े। लेक़िन यह निक्कमी सरकार फ़िर वह वर्तमान सरकार हो या तत्कालीन सरकार हो वह कभी नही चाहेंगी की देश की 100 % आबादी शिक्षित हो क्योकि व्यवस्था का हित लोगो को शिक्षा में गुलाम बनाये रखने में है। अगर सरकार नही चाहती तो देश मे कईसारे आंदोलन होते है लेक़िन जिस तरह का आंदोलन दिल्ली में हुवा था उसी तरह का एक बड़ा आंदोलन खड़ा होना चाहिए ओऱ सरकार को विवश कर देना चाहिए अपनी मांगे लागू करवाने को तब जाकर मुझे लगता है कि शायद यह हत्याए रुक सकती है। तुषार पुष्पदिप सूर्यवंशी एम.एस. डब्ल्यू. महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा, महाराष्ट्र।

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