लोकतंत्र की लड़ाई में युवा वर्ग कहा हैं?


एक तरफ़ देश में अंबेडकर वादी, मार्क्सवादी, पुरोगामी, गांधी वादी संघटन ओर बुद्धिजीवी वर्ग की तरफ़ से लोकतंत्र को ओर लोकतंत्र में स्थित शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे अधिकारों को बचाने के लिए हर क्षेत्र से लड़ाई लड़ी जा रहीं हैं। जिसमें प्रोफ़ेसर, शिक्षक/शिक्षिका, डॉक्टर, वकील, मजदूर, लेखक, कलाकार, पत्रकार, अधिकारी कुल मिलाकर निजी ओर सरकारी क्षेत्र में काम करने वाला वर्ग आंदोलन कर रहा हैं, लोकतंत्र को बचाने की कोशिश कर रहा हैं। वैसे में सरकार ओर न्याय व्यवस्था किस के साथ खड़ी हैं, किस तरफ़ अपने कदम बड़ा रही हैं इसके कई उदाहरण हमें देखने को मिल रहे हैं। 

"NRC, CAA के खिलाफ आंदोलन कर चुके आंदोलनकारियों को हिरासत में लिया जा रहा हैं, तो कहीं पर मजदूरों के हितों के खिलाफ मजदूर कानून में बदलाव किए जा रहे हैं, सरकार के ऑनलाइन शिक्षा के जिद की वजह से कई छात्र/छात्राएं शिक्षा में पिछड़ रहे हैं, जाती को मजबूती देने वाली ऑनार किलिंग जैसी घटनाएं सामने आ रही है, ऑनलाईन शिक्षा के खिलाफ किसी भी तरह की बात की तो वह राष्ट्रहित के विरोध में होगी ऐसा फैसला न्याय व्यवस्था की ओर से सुनाया जा रहा हैं, दूसरी तरफ़ ऑनलाइन शिक्षा में घर के हालत खराब होने के कारण छात्र जुड़ नहीं पा रहे हैं तो पालकों समेत छात्र/छात्राएं आत्महत्या करने को मजबुर हैं, CBSC ने तो उनके पाठयक्रम से लोकतंत्र की पहचान होने वाला सिल्याबस ही हटा दिया हैं।"

ऐसे अनगिनत उदाहरण की गिनती अगर करने बैठ जाए तो गिनती रुकेगी नहीं।

             कुल मिलाकर देश में लोकतंत्र ख़त्म होने की कगार में हैं। ऐसी स्थिति में लोकतंत्र को बचाने के लिए कानूनी तौर के साथ साथ जमीनी तौर पर जो लड़ाई लड़ी जा रही हैं उसमे अंबेडकरवादी, मार्क्सवादी, पूरोगामी, गांधी वादी संघटन के विचारधाराओं के युवा वर्ग का सहभाग नहीं के बराबर हैं। उसमे भी मराठी भाषा का मतलब महाराष्ट्र का युवा वर्ग पीछे हैं हिंदी भाषीक्षेत्र के युवाओं की तुलना में। में उस युवा की बात नहीं कर रहा हूं जिसके दिलो दिमाख में जाती, धर्म, प्रांत, भाषा, लिंग, राष्ट्र को लेकर झूट मुट का राष्ट्रवाद पल रहा हो, में उस युवा की बात कर रहा हूं जो कई लोकतंत्र प्रिय संघटना से विचारधाराओं से जुड़ा हुआ हैं। जो बदलाव की सोच रखता हो जो सोशल मीडिया पर अपना पूरा दिन मिम्स, फ़ोटो, कॉमेंट, चर्चा में बीता देता हैं। जो इतिहास के महापुरुष, क्रांतिकारी महिला पुरुष को अपना आदर्श तो मानता हैं उनके जन्मदिन मृत्यु दिवस पर सोशल मीडिया में फ़ोटो डालकर क्रांति की भाषा करता हैं। लेकिन ऐसी क्या मजबूरी हैं जो यह युवा वर्ग लोकतंत्र को बचाने हेतु नियोजन बद्द, कानूनी तौर पर, इतिहास की तरफ़ एक नज़र डालते हुवे उससे कुछ सीख कर, एक साथ हो कर लड़ नहीं पा रहा हैं? इसमें कौन कम पड़ रहा हैं युवा या फिर वो वर्ग जो लोकतंत्र को बचाने की कोशिश में हैं? ख़ैर में किसी नतीजे तक नहीं जाऊंगा या फिर कोई निष्कर्ष नहीं निकालूंगा फिर भी मेरा सवाल कायम हैं।

"क्या वजह हैं, क्या मजबूरी हैं जो युवा वर्ग इस लड़ाई से नहीं जुड़ पा रहे हैं?, लोकतंत्र की लड़ाई में युवा वर्ग कहा हैं?"

तुषार पुष्पदिप सूर्यवंशी
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा का छात्र।
suryawanshitush41@gmail.com

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