क्या आप इनसे मिले हैं? आइए, आपको इनसे मिलवाता हूँ। वैसे इनका नाम तो मुझे भी पता नहीं लेकिन अक्सर इनकी चर्चा हर जगह मैंने सुनी है। सबसे पहले संविधान बनाते समय संविधान सभा मे सुनी। उसके बाद यही चर्चा 26 नवंबर, 1949 को संविधान को बनकर तैयार होते हुए दिखी। लेकिन फिर 1949 से लेकर आज 2019 तक मैंने उन पर हर बार चर्चा होते हुए सुनी है। सवाल तो यह है कि इनको लेकर कहाँ पर चर्चा नहीं हुई, हर जगह पर मैंने इनको लेकर चर्चा होती देखी। कभी लोक सभा में तो कभी राज्यसभा में, कभी न्यायपालिका में तो कभी उच्च न्यायपालिका में, कभी चुनावी प्रचार में तो कभी नेताओं की सभा में, कभी अख़बारों में तो कभी चाय के ठेले पर। कभी-कभार तो मैंने इनको लेकर होने वाली चर्चा को चाय के ठेले से उठकर दिल्ली की सड़कों तक जाते देखा है। सवाल यह भी है कि इस चर्चा से आखिर होता क्या है? तो मैंने सुना है कि इनको लेकर होने वाली चर्चा कभी सरकार गिराती है तो कभी सरकार बनाती है। कभी पार्टी को मज़बूत बनाती है, तो कभी कमजोर बनाती है, कभी संगठन बनाती है, तो कभी संगठन को ही पार्टी बना देती है। ख़ैर अब ज्यादा सब्र न करते हुए आपको उनसे मिला ही देता हूँ। लेकिन फिर भी आप उनको जानते हैं, वैसे आप सभी को वह बड़ा पसंद आता है। फिर वह किसी का छोटा भाई भी हो सकता है, किसी का भतीजा हो सकता है, किसी का बेटा, किसी का पोता हो सकता है और न जाने वह क्या- क्या हो सकता है? वैसे तो बिलकुल आपके भाई, बेटा, भतीजा और पोते जैसा ही है। लेकिन आपका भाई, बेटा, भतीजा और पोता इस देश का नागरिक तो है लेकिन वह नहीं। आपके भाई, बेटे, भतीजे और पोते के लिए इस देश में शिक्षा का अधिकार उसको नहीं है। आपके भाई, बेटे, भतीजे और पोते को हर वह चीज मुहैय्या की जाती है, जिसमें रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा आरोग्य जैसी सुविधाएं होती है। उसको ये सभी चीजें नहीं मिलती और वह मांग भी नहीं सकता। अगर मांग भी लेता है तो शायद ही वह सुविधा उसको मिल पाए। जबकि आपके भाई, बेटे, भतीजे और पोते को पढ़ने के लिए स्कूल, कॉलेज वही बनाते हैं। आपके लिए स्कूल-कॉलेज बरसों से उसके बाप-दादे ही बनाते आए हैं। आपके भाई, बेटे, भतीजे और पोते को आप पहनने को तरह-तरह के कपड़े खरीद कर देते होंगे लेकिन उसको नंगा बदन घूमना पड़ता है, जबकि कपास वही उगाता है। आपके भाई, बेटे, भतीजे और पोते को खाने को भर पेट खाना मिलता होगा लेकिन उसको एक वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती। जबकि अनाज भी वही उगाता है। वैसे देखा जाए तो उसके बाप-दादों ने बरसों से इस देश को अपने दम पर अनाज उगाकर पाला है। इसके बावजूद भी वह इस देश का नागरिक नहीं है तो क्या वह पाकिस्तान का है या फिर अमेरिका, जापान का है। पैदा तो वह इस देश में ही हुआ है। उसके बाप-दादे भी इस देश में बरसों से रह रहे हैं लेकिन फिर भी वह इस देश का नागरिक नहीं है। अगर होता तो उसको भी शिक्षा का अधिकार होता, उसको भी आरोग्य की सुविधा मिलती, उसको भी खाने को भर पेट अन्न मिलता, उसको भी बदन ढ़क जाये इतने तो कपड़े मिल ही जाते। वह भी आपके भाई, बेटे, भतीजे और पोते की तरह प्यारा लगता। लेकिन क्या करे वह इस देश में पैदा होने के बाद भी इस देश का नागरिक नहीं है। उसको जिस माँ ने जन्म दिया वह भी इस देश की भारत माता है, यह बात अलग है कि आपकी भारत माता एक फोटो में टंगी हुई है इसलिए आप उस माँ को भारत माता नहीं मानोगे लेकिन हकीकत यही है कि उसको पैदा करने वाली माँ भी इस देश की है और उसके नजर में वही भारत माता है। अबतक तो आप समझ ही गए होंगे कि मैं किसकी बात कर रहा हूँ। अगर अब भी नहीं समझे तो इसका मतलब है कि आप समझना ही नहीं चाहते! लेकिन मेरा काम है आपको समझाना, वैसे मैं उनसे भी वाकिफ हूँ जो समझकर भी ना-समझी दिखाते हैं तो आइये, मैं आपको उनसे मिला ही देता हूँ। दिनांक 2 मार्च, 2019 की बात है, मैं महात्मा गांधी अंतराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में समाज कार्य पढ़ रहा हूँ। क्षेत्र भ्रमण के क्रम में रेलवे स्टेशन जा रहा था वहाँ पर ही मेरे विश्वविद्यालय के एक इमारत का काम चल रहा है। उस काम के लिए 200 से ज्यादा मजदूर वहां पर काम कर रहे हैं। उनके साथ उनके छोटे-छोटे बच्चे भी वहां पर खेलते रहते हैं। उसमें से एक बच्चा मेरी नजर में आया तो क्या इससे पहले मुझे वह बच्चे नहीं दिखे? जी हाँ दिखे तो थे लेकिन आप ही की तरह मैंने उनको नजरंदाज़ कर दिया था। लेकिन इस बार उसको गौर करने की वजह ही कुछ ऐसी है। जिससे आप वाक़िफ़ नहीं हो जैसे की पूरे भारत में जिस तरह का माहौल चल रहा है। एक लाख से ज्यादा आदिवासियों को उनके जमीन से बेदखल किया जा रहा है। जिस पर बरसों से वह आदिवासी रहते आ रहे हैं, उनकी संस्कृति वहां पर है, उनके देवी-देवता भी वहीं पर हैं, उनकी परंपरा वहीं है। उन सबको उनकी संस्कृति, परंपरा, देवी- देवता छोड़कर वहां से भगाया जा रहा है। कई गांव के गांव जंगल छोड़कर पलायन कर रहे हैं। ऐसे में उनके साथ छोटे- छोटे बच्चे भी हैं। जिसको मैं बहुत देर से आपसे मिलाने की बात कर रहा हूँ। जी हाँ, ये वही बच्चे हैं जो आपके बेटे, भाई, पोते जैसे ही हैं लेकिन उनपर बहुत बड़ा हमला हो रहा है। वह सब आदिवासियो के बच्चे मुझे विश्वविद्यालय के उस छोटे से बच्चे में नजर आया। वैसे आपके कई सारे सवाल हो सकते हैं, उसका जवाब आपको आदिवासियों के तरफ एक नज़र डालने से मिल जाएंगे। उस बेटी की मौत से मिल जाएँगे जो भूख के मारे चावल-चावल करती मर गयी। उन बच्चों को देखने से मिल जाएँगे जो सिग्नल पर खेलने के उम्र में खिलौना बेचते हैं। जो रेल में गाना गाकर अपना पेट पालते हैं। ऐसे कई सारे बच्चे हैं, जिनको देखकर, समझकर, मिलकर आपको आपके सवाल का जवाब मिल जाएगा और आप मुझे देशद्रोही नहीं कहेंगे। खेलने के उम्र में वह सिग्नल पर खड़े होकर खिलौना बेच रहा था। देखना कहीं उनकी संख्या न बढ़ जाए, रास्ते पर आपके गाड़ी के नीचे आकर कोई मर ना जाए। सुना है उनके घर-जंगल से आदिवासियों को निकाला जा रहा है। तुषार पुष्पदीप सूर्यवंशी, छात्र, समाजकार्य (एम॰ एस॰ डब्ल्यू॰) महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा, महाराष्ट्र। Suryawanshitushar41@gmail.com

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