#बारूद__मजदूर__और__200__रुपए।
क्या बारूद को सिर पर
उठाने से पेट भरता था?
हा बारूद को सिर पर उठाने से पेट भरता था पर आज मौत ने सारा किस्सा ही खत्म कर दिया ?
वैसे रोज अख़बार पड़ने की आदत नही है मेरी लेकिन आज ग़लती से अख़बार पढ़ने के लिए हाथ में लिया और वह घटना मेरी नजर में कैद हो गयी। जिस घटना को अख़बार ने एक अपघात बताया था। जिस अपघात में हिंदी औऱ मराठी अखबार के मुताबिक 23 साल के दो 35 साल का एक औऱ चालीस साल के दो और उनके साथ एक अधिकारी कुल मिलाकर छह लोगों कि बारूद की पेटी उतारते वक्त मौत हो गईं जिसे मैं अपघाती मौत नही बल्कि एक हत्या कहूंगा।
वर्धा जिले के पुलगांव में केंद्रीय गोलाबारूद भंडार है। जो आशिया खंड में दूसरे नबंर पर आता है। जहाँ से शक्तिशाली बम तैयार कर देश के सीमाएं पर भेजे जाते है। साथ ही जो बम काम में नही आते उसको नष्ठ करने की प्रक्रिया भी चलायी जाती है। उस प्रक्रिया के लिए हजारों एकड जमीन प्रयोग में लि जा रही है। और वहा पर गोलाबारूद भंडार है वह पुलगांव से 10 या 12 किलोमीटर के अंतर पर सोनेगांव औऱ केलापुर गावों के बीच में है। मतलब उस घटना से पिंपरी(खराबे), आगरगाव, नागझरी, एसगाव, मुरदगाव भी खतरे में है। जो आज नही तो कल बारूद से उड़ ही जाएंगे। उन गावों के लोगो की सुरक्षा के लिए गावों के पुनर्वसन की मांग भी की गयी थी। लेकिन आज़तक उन गावों का पुनर्वसन नही हो पाया औऱ शायद ही कभी हो पाएगा। वैसे देखा जाए तो वहाँ के गाव के लोग दहशत में अपनी जिंदगी बिता रहे है। यही नही बल्कि 2006 में भी पुलगांव के इस डेपो में विस्फोट हुवा था जिसमे सेना के दो अधिकारी समेत 16 जवान मारे गए थे और 19 घायल हो गए थे। उस ही घटना के पुनरावृत्ति दिनांक 20 नवम्बर 2018 को सुबह 7 बजकर 10 मिनट पर महाराष्ट्र के वर्धा जिल्हे में पुलगाव के केंद्रीय गोलाबारूद भंडार में वाहन से बारूद की पेटी उतारते वक्त बम्ब फटकर 6 लोगो की मौत हो गयी। उस वक्त वहाँ पर और 20 मजदूर भी उपस्थित थे जिसमे 11 लोग गंभीर रूप से घायल है।
इस सारी घटना में दोषी कौन है इसको देखना बहुत जरूरी है। इस घटना में डीपो के अधिकारियों को दोषी कहु तो शायद मुझे देहद्रोही कहा जा सकता है या फिर वह ठेकेदार दोषी है यह अपने आप मे एक सवाल बन सकता है। लेकिन अगर हम उस घटना को ठीक से देखे तो पता चलता है की दोनों ही दोषी है।
बेरोज़गारी और अपने पेट को भरने के लिए भारत मे जो काम मिले उसको कर भारत की आधी से ज्यादा आबादी अपना जीवन व्यतीत करती है। उसका ही एक हिस्सा इस घटना में दिखायी पड़ता है। पुलगांव के गोलाबारूद भंडार में जो बम काम मे नही आते उनको नष्ट करने का काम चलाया जाता है। उस बम को नष्ट करने के लिए पहले सेना में प्रशिक्षण लिए अधिकारी चुने जाते थे औऱ वही उस काम को अंजाम देते वैसे देखा जाए तो वह काम उनके सिवा कोई नही कर सकता औऱ करना भी नही चाहिए क्योंकि प्रशिक्षण पाया हुवा अधिकारी ही उस काम को अंजाम दे सकता है। लेकिन पूरे भारत मे अगर हर क्षेत्र को खाजगी बनाने की कोशिश चल रही है तो उस खाजगी बनाने की प्रक्रिया से भारतीय सेना का गोलाबारूद भंडार कैसे अपवाद रह सकता है। बिल्कुल वैसा ही हुवा उस काम को भी खाजगी बनाकर वह बारूद नष्ट करने का काम चांडक नामक ठेकेदार को दिया। औऱ उसको देने की वजह से उस गाँव के आसपास के लोगो को लेकर वह बारूद नष्ट करने लगा। उस नष्ठ किये गए बारूद से दो क्विंटल लोहे के टुकड़े, धातु के टुकड़े औऱ पाँच से छह लाख का साहित्य बाहर निकलता था। जाएज़ है उस काम को अंजाम देने के लिए सेना के अधिकारों तो रहेंगे नही क्योकि वह काम ठेकेदार को देकर खाजगी कर दिया गया है। तो अपना पेट भरने के लिए गाँव के आसपास के लोग अपने सिरपर जिंदा बारूद भी उठाने को तैयार हो गए वह भी बिना सुरक्षा कवच के क्योकि पेट का सवाल था। इस तरह से वह काम चल रहा था। लेकिन ऐसे बिना प्रशिक्षण दिए आदमिओ को वह जोखिम भरा काम बिना किसी सुरक्षा को दे देना खतरे से खाली नही था। फिर भी वहां के सेना अधिकारी ने वह कॉन्ट्रैक्ट चांडक नामक ठेकेदार को दे दिया। और जो होना था वह हो गया प्रशिक्षण के साथ सुरक्षा न होने की वजह से 6 लोगो की मौत हो गयी उसको में अपघात कहू तो कैसे वह एक हत्या ही है और उस हत्या का जिम्मेदार कौन है यह मुजे अब बताने की जरूरत नही है। उस सारे काम को इतनी जोखिम उठाकर अंजाम देनेवाले मजदूर जो पेट के खातिर रोज सिरपर बम उठाते थे उनको उस काम मजदूरी बस 200 या 300 रुपये में मिलता था और चांडक नामक ठेकेदार को 4 से 5 लाख रु मिलते थे। अब उन 6 लोगो की हत्या के बाद सरकार से नेता लोग वहां के अधिकारी कुछ लाख की राशी मिलवाकर देंगे औऱ फिर से वही आसपास के गांव से आये मजदूर को बारूद खिलवाकर मार देंगे अब सवाल वही है कि आखिर दोषी कौन है और सजा कब तक और किसे मिलेगी ???
तुषार पुष्पदिप सूर्यवंशी।
महात्मा फुले कोण होते. अशी एक घटना 15 व्या शतकात घडली गेली ज्या घटनेमुळे बहुजनांच कल्याण झालं एक माणूस जो जातीने क्षत्रिय माळी होता आपल्या ब्राम्हण मित्राच्या आग्रहाने लग्नसमारंभात गेला, नवरा मुलगा नवरीकडे वर्हाडी मंडळी साहित मिरवीत जात होता त्या मिरवणुकीत ब्राम्हण बायका, पुरुष आणि मूल देखील होती, त्या ठिकाणी इतर जातीचे लोक क्वचितच होते तो व्यक्ती त्या मिरवणुकीतील मंडळी सोबत चालत होता. कोणत्याही प्रकारची त्याला कल्पना नव्हती की आता आपल्या सोबत काय होणार आहे ते तितक्यात ब्राम्हनाचा ज्वलंत अभिमान बाळगणाऱ्या काही सनातनी ब्राम्हणांनी त्याला ओळखले. ब्राम्हण भुदेवाबरोबर कनिष्ठ वर्गातील एका शूद्र माळ्याच्या मुलाने लग्नाच्या मिरवणुकीत बरोबरीने चालावे हे म्हणजे चुरण खाऊन जेवण न पचल्या सारखे होते, संतापाने काही ब्राम्हण बेभान झाले, त्यांच्यापैकी एकजण त्या माणसावर जोरात ओरडला आणि म्हणाला “ब्रम्हासंगे रस्त्यातून चालायला तुजी हिंमत झालीच कशि? अरे शूद्रा तू जातीपातीचे सगळी बंधने आणि रीतिरिवाज धुडकावून आमचा असा अपमान करतोस! तू आमच्या बरोबरीचा आहे असं समजतो की काय? असं लागण्य
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