दलित_पैंथर_रामदास_आठवले_औऱ_अंबेडकर_वादी 2 नवंबर 2018 को महात्मा गांधी आंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में #दलित_पैंथर_आंदोलन इस विषय पर अपनी बात रखने के लिए दलित पैंथर को छोड़ चुके कार्यकर्ता, खुदको दलित पैंथर का आजीविक कार्यकर्ता कहने वाले, अंबेडकर वादी औऱ पैंथर समजने वाले भारतीय जनता पार्टी में सामाजिक न्याय मंत्री पदपर टिके हुवे रामदास आठवले आये थे। उनकी बातों को समझते हुवे सबसे पहला सवाल यह उठा कि इनको एक विद्यार्थी के रूप में समजना है तो कैसे समजू। अक्सर रामदास आठवले जी को या फिर उनकी बातों को लोग बोहोत हल्के में लेते है या फ़िर मजाक में लेते है क्योंकि उनका बोलने का अपना एक अंदाज है। फिर वह राज्यसभा हो या कोई आम सभा हो सब जगह अपनी कविता जिसे वो साहित्य समजते होंगे उसके साथ हसते हँसाते अपनी बात रखते है। बस उसही तरह इस बार भी अपनी बात को कविता के रूप में रखकर कार्यक्रम की शुरवात की कविता- दलित पैंथर आंदोलन में मुझे हर बार मिला धोका, इसलिए आपने मुजे दलित पैंथर पर बोलने का दिया मौका। सारा सभागृह हसने लगा लेकिन अगर उनके कविता को ठीक से समजे तो शायद ही आठवले जी के पूरी बातो को या ख़ुद उनको अच्छे से समज पाते। दूसरी बात रामादास आठवले जी शायद ही दलित पैंथर को सबके सामने ठीक तरह से रखते यह अपने आप मे एक बड़ा सवाल है। जैसी उम्मीद की थी वैसा ही आठवले जी ने कविता से शुरवात की और उसही कविता पर दलित पैंथर को खत्म कर दिया। जो बातें रखनी थी उसे नाही उनोने रखा औऱ नाही किसने उनसे उसके बारे कुछ सवाल पूछे। उनका दलित पैंथर में जो कुछ योगदान था उसे नाही कोई नकार सकता है नाही में नकार रहा हु लेकिन मेरा सवाल ये है कि ऐसी कोनसी वजह थी जिस वजह से रामदास आठवले जी को दलित पैंथर छोड़ना पड़ी और आजके कार्यक्रम में "मुजे हरबार मिला है दलित पैंथर आंदोलन में धोका" जैसी बात कहनी पड़ी? अगर इसको थोड़ा स्पष्ठ कर देते तो शायद ठीक होता। दूसरी बात जो उनोने कही- "दलित पैंथर आंदोलन हिंसक आंदोलन नही था, माओवादी नही था, नक्षलवादी नही था युद्ध की और नही तो बुद्ध की औऱ जाने वाला दलित पैंथर का आंदोलन था" पूरे सभागार में तालिया पड़ी इसमे शायद सच्चाई भी है और तालिया मिले ऐसी भी ओ बात थी। लेकिन अगर में आठवले जी जिस पार्टी में है वह पार्टी बुद्ध की और जा रही है या युद्ध की औऱ जा रही है इसको भी समजना होगा औऱ अठावले जी ख़ुदको अंबेडकर वादी कहते है वो सचमे अंबेडकर वादी है क्या? यह अपने आप मे एक बड़ा सवाल या फिर सच्चाई है। शायद आठवले जी को बुलाने का संयोजक का मकसत कुछ औऱ हो सकता है। लेकिन अगर आठवले या फिर आमंत्रित करने वालो को हम अंबेडकर वादी समजते है तो शायद गलती कर रहे है। ऐसा कहना मेरा उचित भी हो सकता है या फिर गलत भी। क्योकि जिस पार्टी से आठवले जी आज के तारीख में जुड़े है उस पार्टी में रहते समय उनको दलित पैंथर पर बोलने को बुलाना औऱ आठवले जी को ख़ुद को अंबेडकर वादी कहना मेरी नजर में कुछ ठीक नही है। क्योकि जिस पार्टी से रामदास आठवले जी आज मंत्रिपद पद पर है उस पार्टी से जुड़ना फिर वो सामाजिक हो राजनैतिक हो या फिर विचारोंके आधारपर हो सीधा डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर के विचारोंका खून करने जैसा है। इसके लिए इतिहास गवाह है कि भारतीय जनता पार्टी जिस विचारधारा से आती है संघ विचारधार उस विचारधारा ने हमेशा से संविधान और बाबा साहब का विरोध सामुहिक सबके सामने खुलकर किया है सिर्फ विरोध ही नही तो सीधे संविधान पर प्रहार किया है यहाँतक की संविधान को जला भी दिया है। आठवले जी ने यह भी कहा कि "में भाजपा में हु लेकिन मोदी मेरी सुनते है मैंने मोदी से कहा है संविधान को हात नही लगाना" हमे यह समजना होगा कि वह लोग संविधान का नही मानते तो आठवले जी का कहा से मानेंगे अगर सचमे आठवले जी की बात सुनते है। तो मेरा सवाल है आठवले जी से पूछो उनसे की तुमारे सत्ता में आते ही दलितोपर अत्याचार क्यो बढ़ गए, क्यो बेरोजगारी नही हो रही है, क्यो तुमने लोगो के खाते में 15 लाख रु नही जमा करवाए, क्यो भगवा धारी गौ- रक्षा के नामपर बेगुनाह को मार रहे है, क्यो दलित आदिवासी छात्राओं की स्कोलरशिप नही मिलती, क्यो छात्रावास की जगह खाते में पैसे जमा करवाने का अध्यादेश निकाला, क्यो सरकारी पाठशाला बंद करवा रहे हो कई सारी बाते है कहने की जो कहने की जरूरत है। लेकिन यह बातें अगर पूछे तो मंत्री पद बचने से रह नही। बाबा साहब का जो उदेश्य था न्याय, स्वतन्त्र, समता, बंधुता औऱ जो मंत्र था पढ़ो संघटीत हो और संघर्ष करो उस उदेश्य को मंत्र को सफल करने के लिए बाबा साहब ने हमे संविधान दिया लेकिन ओ उदेश्य पूरा ना हो इस लिए बार बार उस विचारधारा ने संविधान पर प्रहार किया है उसही विचारधार ने जाती, धर्म, वर्ण औऱ वर्ग को घट्ट (पक्का) करने काम किया है। आरक्षण को खत्म करने का काम भी उनोने है किया है जिस विचारधारा के पार्टी से आठवले जी औऱ ख़ुद को बाबा साहब के अनुयायी कहने वाले जुड़ चुके है। मजाक मजाक में आठवले जी कह गए औऱ सब ने तालियां भी बजायी ओ बात थी कि "जबतक में हु तबक़त मोदी सत्ता में है जबतक मोदी है तबतक में मंत्री हु" यहापर देश की आधी आबादी चाहती है कि मोदी सत्ता में नही रहे औऱ दूसरी तरफ ये कह रहे है कि जबतक में हु तबक़त मोदी सत्ता में है। कहने का मतलब यह है कि क्या सचमे आठवले जी औऱ उनको बुलाकर उनका गुणगान गानेवाले उनकी चाटुगिरी करनेवाले अंबेडकर वादी है। बाबा साहब के सच्चे अनुयायी है अगर होते तो एक बात मैन वहाँपर देखी जो हर मंच पर दिखती है हर उस आंदोलन में कार्यक्रम में दिखती है जो ख़ुदको पुरोगामी, अंबेडकर वादी समझते है। ओ बात है समानता की अंबेडकर का नाम लेते ही मुजे न्याय, स्वतंत्र, समता, बंधुता जैसी कई बातें याद आती है जो भारतीय संविधान के प्रस्तावना में लिखी गयी है। जिसको अक्सर जोर जोर से पढ़ा भी जाता है। उसही संविधान की समानता की बात में कर रहा हु जो अक्सर नही दिखाई देती है। बात दलित पैंथर पर थी जो बाबा साहब के नाम पर खड़ी है जिसका उद्देश्य बाबा साहब का उद्देश्य था। बात रखने वाले दलित पैंथर के आजीविका कार्यकर्ता थे। उनको बुलाने वाले अंबेडकर वादी थे पूरा मंच, पूरा सभागृह बाबा साहब के विचारों से भरा हुआ था हा उसमे कोई संघ वादी भी थे जिनकी शुरवात मंच से दरवाजे तक थी बस ओ बाबा साहब के विचारों का चेहरा चढ़ाए हुवे थे। उस उस सारे सभागृह में कार्यक्रम का संचालन पुरुष कर रहे थे। सारा आयोजन फोटो, रिपोर्टिंग, आभार, अतिथि को बुलाना छोड़ने तक का काम पुरुष ही कर रहे थे उस बीच लड़किओं लो जो वहाँपर स्री का प्रतिनिधित्व कर रही थी उनको काम दिया गया था स्वागत के लिए फूल-वस्र देना। चाय- नास्ता उसके बाद टिशू पेपर देना मतलब जहा उम्मीद है महिलाओं औऱ पुरुषों में समानता दिखाई देगी वहिपर दिखाई नही दी ये तो सिर्फ उस कार्यक्रम का उदाहरण है ऐसा तो हर जगह होता है। इसका मतलब पितृसत्तात्मक पद्धति काम करती ही है फिर वो अंबेडकर वादी हो कम्युनिस्ट हो या पुरोगामी हो। शायद आयोजन करने वालो का या फिर उन लड़कियों का वैसा उद्देश्य नही होगा लेकिन ये समजना तो होगा। सब समझता तो है लेकिन क्या करे आदत से मजबूर है। अपना हित भी तो समजना है वो नही हुवा तो कैसे चलेगा। फिर भी अपने है आशावाद रखता हूं उनसे तो नही रख सकता जो व्यवस्था से जुड़ चुके है औऱ खुद को पता नही क्या क्या कहते है। तुषार पुष्पदिप सूर्यवंशी महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा, महाराष्ट्र.

Comments

Popular posts from this blog

लोकतंत्र की लड़ाई में युवा वर्ग कहा हैं?