उस दिन की बात है जब नथुराम घोड़से जिंदा दिखा
साथियो ये उस दिन की बात है, जिस दिन आजादि से लेकर 70 साल बाद भी हर साल 2 अक्तूबर को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस मनाया जाता है और सिर्फ अहिंसा दिवस ही नही बल्कि साथ ही हिंसा दिवस भी मनाया जाता है। ओ बात अलग है कि अहिंसा दिवस तो बस नाम तक ही सीमित है बनाना तो हिंसा दिवस ही चाहते है। इस साल में 2 अक्तूबर को महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा, महाराष्ट्र में था जहा मेरी समाजकार्य की पढ़ाई चल रही है। 2 अक्तूबर को सबेरे 6.30 बजे गांधी हिल पर प्राथना हुवी जो साल भर नही होती और नाही उसपर अमल किया जाता है। उसके बाद मेरे ही केंद्र महात्मा गांधी फ़्यूजी गुरुजी समाज कार्य अध्ययन केंद्र में 150 पेड़ लगाने की शपथ के साथ वृक्षारोपण किया गया। फिर 10.30 बजे गांधीजी को व्याख्यान में खिंचा गया और उनके दर्शनोंके साथ कई सारे विषयोंको शाम 6.00 बजेतक रखा गया। फिर दूसरे दिन पूरे देश मे चल रहा विवाद अंबेडकर वाद और गांधी वाद को "संविधान, समाज और गांधी" के विषय के अंतर्गत छेड़ा गया उस वाद विवाद पर अगर मेरी राय पूछो तो विचारो के आधारपर अंबेडकर गांधी के तुलना में सही थे जबकि थोड़ी बोहोत उनके विचारोंमे समानता थी ऐसा मुझे लगता है। शायद में गलत भी हो सकता हु और सही भी। फिर शाम को 4.30 बजे गांधी और नथुराम को लेकर एक नाटिका थी उस दिन की ये बात है।
3 अक्तूबर 2018 को चलरहे कार्यक्रम में बोहोत संख्या नही थी लेकिन उस कार्यक्रम के बाद जब नाटिका का समय हुवा तो बैठने को जगह नही बची थी कई लोग खड़े थे लग रहा था कि कितना प्यार है गांधी पर उन लोगो का जो पहले दिन पेड़ लगाने नही आये, प्राथना करने नही आये गांधी के विभिन्न अंगों को समझने वाले कार्यक्रम में नही आये बस नाटिका देखने चले आये इस्से गांधी पर या उनके विचारोपर कितना प्यार है पता चल ही जाता है। वैसे भी आजके तारीख में कई सारे नाटिका करने वाले उनको छोड़कर जो इनमे नही बसते है। ओ सिर्फ रंगमंच तक ही सीमित रहते है, वहां तक ही उनकी विचारधारा उनका कार्य उनका परिवर्तन रहता है रंगमंच से उतरने के बाद ओ अलग रहते है, हा ये बात में भी जानता हूं कि रंगमंच पर सक्रिय कलाकार नाटिका के समय जिस भूमिका में रहता है फिर वो किसी भी विचारधारा से ही किसी भी पार्टी से समाज से जाती, धर्म से हो वह उस वक्त सिर्फ उस पात्र की भूमिका अदा करता है। उसके बाद वह अलग विचारधारा का अलग सोच, अलग जाती, धर्म हो सकता है। लेकिन कईसारे कलाकार रंगमंच पर जिस उद्देश्य से कार्य करते है उस उदेश्य को अपने जीवन मे भी लागू करते है। में उस दिन की बात कर रहा था जिस दिन नथुराम और गांधी पर आधारित नाटिका चल रही थी ये नाटिका काल्पनिक आधार पर थी ऐसा निवेदक का कहना था फ़िर नथुराम ने गांधी को गोली से मारने के बाद गांधी बचते है और जेल में नथुराम से मिलने जाते है फिर वहाँपर जो बातचीत होती है जिसमे गांधी जेलर से कहकर नथुराम की जंजीरे, हतकड़िया खोल देते है। फिर गांधी सवाल करते है कि मेरे प्रति तुमारे मन मे इतनी घृणा क्यो है? नथुराम जबाब देता है आप धर्म द्रोही हो आपकी वजह से हिंदू धर्म को ठेच पोहोची है और आपको मारने के लिए मुजे फाँसी पर भी चढ़ना पढ़ा तो कोई गम नही।
दर्शक ताली.... ताली.... ताली....ताली
फिर नथुराम कहता है हिंदू धर्म के ख़िलाफ़ बोलने वाले लिखने वाले और उसमें दरी निर्माण करने वालो की और हिंदू धर्म के लिए मुजे कितनी भी हत्याएं करने पड़ी तो में करूँगा।
दर्शक ताली.... ताली.... ताली.... ताली
ऐसे करते करते जिन जिन बातोंपर नथुराम ने नाटिका में गांधी के खिलाफ बात की तब तब दर्शकों में से तालिया बज रही थी। बस में आधे में उस नाटिका को छोड़ बाहर निकल गया।
लेकिन दर्शको में से जो तालिया बज रही थी वो सकेंत कर रही थी कि गांधी की हत्या करके नथुराम ने अच्छा काम किया और साथ ही आज की तारीख में कोई आलोचना करेगा गांधी बनाना चाहेगा हिंदू मुस्लिम और किसी भी धर्म जाती की चिकित्सा करेगा उसको मारने के लिए नथुराम जिंदा है और जिंदा रहेगा। में मेरे कविता के अंदाज में कहु तो-
ये गांधी सुन आज अगर तू जिंदा है
तो साथ मे बंदूक लेकर घूमना।
पता नही कब तुजे मिटाने नथुराम आये
फिर नही चलेगा तेरा कोई शस्र।
तुषार पुष्पदिप सूर्यवंशी
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा।
महात्मा फुले कोण होते. अशी एक घटना 15 व्या शतकात घडली गेली ज्या घटनेमुळे बहुजनांच कल्याण झालं एक माणूस जो जातीने क्षत्रिय माळी होता आपल्या ब्राम्हण मित्राच्या आग्रहाने लग्नसमारंभात गेला, नवरा मुलगा नवरीकडे वर्हाडी मंडळी साहित मिरवीत जात होता त्या मिरवणुकीत ब्राम्हण बायका, पुरुष आणि मूल देखील होती, त्या ठिकाणी इतर जातीचे लोक क्वचितच होते तो व्यक्ती त्या मिरवणुकीतील मंडळी सोबत चालत होता. कोणत्याही प्रकारची त्याला कल्पना नव्हती की आता आपल्या सोबत काय होणार आहे ते तितक्यात ब्राम्हनाचा ज्वलंत अभिमान बाळगणाऱ्या काही सनातनी ब्राम्हणांनी त्याला ओळखले. ब्राम्हण भुदेवाबरोबर कनिष्ठ वर्गातील एका शूद्र माळ्याच्या मुलाने लग्नाच्या मिरवणुकीत बरोबरीने चालावे हे म्हणजे चुरण खाऊन जेवण न पचल्या सारखे होते, संतापाने काही ब्राम्हण बेभान झाले, त्यांच्यापैकी एकजण त्या माणसावर जोरात ओरडला आणि म्हणाला “ब्रम्हासंगे रस्त्यातून चालायला तुजी हिंमत झालीच कशि? अरे शूद्रा तू जातीपातीचे सगळी बंधने आणि रीतिरिवाज धुडकावून आमचा असा अपमान करतोस! तू आमच्या बरोबरीचा आहे असं समजतो की काय? असं लागण्य
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