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पुस्तक - राष्ट्रीय शिक्षण धोरण 2019: जनतेच्या शिक्षण कत्तलीचा जाहीरनामा.

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पुस्तक - राष्ट्रीय शिक्षण धोरण 2019: जनतेच्या शिक्षण कत्तलीचा जाहीरनामा. लेखक - रमेश बिजेकर, नागपूर डाऊनलोड PDF  https://drive.google.com/file/d/1G3O7YDgZcSi4-WsPd0TutzlRTaYAalle/view

लोकतंत्र की लड़ाई में युवा वर्ग कहा हैं?

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एक तरफ़ देश में अंबेडकर वादी, मार्क्सवादी, पुरोगामी, गांधी वादी संघटन ओर बुद्धिजीवी वर्ग की तरफ़ से लोकतंत्र को ओर लोकतंत्र में स्थित शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे अधिकारों को बचाने के लिए हर क्षेत्र से लड़ाई लड़ी जा रहीं हैं। जिसमें प्रोफ़ेसर, शिक्षक/शिक्षिका, डॉक्टर, वकील, मजदूर, लेखक, कलाकार, पत्रकार, अधिकारी कुल मिलाकर निजी ओर सरकारी क्षेत्र में काम करने वाला वर्ग आंदोलन कर रहा हैं, लोकतंत्र को बचाने की कोशिश कर रहा हैं। वैसे में सरकार ओर न्याय व्यवस्था किस के साथ खड़ी हैं, किस तरफ़ अपने कदम बड़ा रही हैं इसके कई उदाहरण हमें देखने को मिल रहे हैं।  "NRC , CAA के खिलाफ आंदोलन कर चुके आंदोलनकारियों को हिरासत में लिया जा रहा हैं, तो कहीं पर मजदूरों के हितों के खिलाफ मजदूर कानून में बदलाव किए जा रहे हैं, सरकार के ऑनलाइन शिक्षा के जिद की वजह से कई छात्र/छात्राएं शिक्षा में पिछड़ रहे हैं, जाती को मजबूती देने वाली ऑनार किलिंग जैसी घटनाएं सामने आ रही है, ऑनलाईन शिक्षा के खिलाफ किसी भी तरह की बात की तो वह राष्ट्रहित के विरोध में होगी ऐसा फैसला न्याय व्यवस्था की ओर से सुनाया जा रहा ह
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13 फ़रवरी एक विद्रोही शायर का जन्मदिन 'फ़ैज़ अहमद फ़ैज़' पिछले कुछ दिनों में फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की एक नज़्म "हम देखंगे" को लेकर देश में जो विवाद हुआ उस विवाद से फ़ैज़ को और फ़ैज़ की नज़्म को ना पसंद करने वाले लोग या फ़ैज़ की उस नज़्म को लेकर राजनतिक करने वाले लोगों ने उस नज़्म को देश के उन आम लोगो तक पहुंचा दिया जीनोन फ़ैज़ का शायद अपनी जिंदगी में कभी नाम तक नहीं सुना हो गा। लेकिन प्रतिक्रान्ति कभी कभी इतनी मजेदार होती हैं। की ख़ुद प्रतिक्रान्ति की चाहत रखने वालों की वजह से लोगो में क्रांति की मंशा जाग उठती हैं। ख़ैर फ़ैज़ के जिंदगी में ऐसे कई लोग हो गए जिन्होंने फ़ैज़ के नज़्म के साथ साथ फ़ैज़ का भी विरोध किया हैं। साथ ही कई बार उनकी गिरफ्तारी तक हुवीं हैं। लेकिन फ़ैज़ को ना पसंद करने वालो ने ना उस वक्त यह समझा ना इस वक्त समझ पा रहे हैं कि फ़ैज़ इतने बड़े और इतने पसंद किए जाने वाले शायर हैं। जिनकी नज़्म रूसी तथा अरबी भाषा में प्रकाशित हो चुकी हैं। इतना ही नहीं केवल रूसी भाषा में फ़ैज़ के शायरी की दो लाख दस हज़ार प्रतिया प्रकाशित हो चुकी हैं। साथ ही 1962 ई. में उन्ह
दिल्ली_की_मेट्रो_ओऱ_गाँवो_में_बस_की_कमतरता। आज दिल्ली में दूसरा दिन ओऱ दो दिनों से कईसारी चीजो को जान रहा हु। इस दौरान कल में ओऱ मेरे साथी मेट्रो से जा रहे थे। मस्ती मजा ओऱ कई मुद्दों पर बाते भी हो रही थी उस दौरान एक साथी ने ( नाम बताने की इजाज़त नही लीया हु इस लिए नाम अज्ञात है) युही बोलते बोलते कहा कि पीछले कुछ वर्षों पहले शायद यह घोषणा हुवी थी कि महिलाओं के लिए मेट्रो से यात्रा करना मुफ़्त होगा। शायद इस में हक़ीक़त नही भी हो सकती हैं। क्योंकि उनोने भी इसके बारे में सिर्फ़ सुना था। फिर मैंने उन से कहा कि मेट्रो से यात्रा करना महिलाओं के लिए मुफ़्त हैं भी तो उसका लाभ कोनसी महिलाएं उठाएं गी? उनका वर्ग (क्लास) क्या? होगा, मेट्रो से कोन से वर्ग (क्लास) की महिलाएं यात्रा करती है? यह सारे सवाल हमारे उस भागदौड में लुफ़्त हो गए ओऱ वह साथी उसके आगे बढ़कर कहने लगी कि स्कूल कॉलेज जाने वाली लड़कियों के लिए ही सही बस में मेट्रो में आदि जगहों से यात्रा करना मुफ़्त होना चाहिए। उनका कहना सही था लेक़िन मैंने उससे आगे जाकर कहा कि यह आपका तो सही है। लेक़िन ऐसी कई जगह है कई समुदाय है कई जातियां है कई गांव है जहाँ
आनंदी गोपाळ (चित्रपट) एक म्हण आपल्या समाजात रूढ झालेली आहे "प्रत्येक यशस्वी पुरुषा मागे एका स्त्री चा हात असतो" यात स्त्रीचा जरी उद्धार दिसत असला किंवा स्त्री जरी महत्वाची वाटत असली तरी या म्हणी मागे एका प्रकारची पितृसत्ताक मानसिकता आहे. म्हणजे स्त्री जाती ने फक्त यशस्वी पुरुष घडवायचेत आणि स्वतःला समाधानी मानून शांत बसायचं परंतु याच्याच उलट जर अशी म्हण निर्माण झाली की "प्रत्येक यशस्वी स्त्रीयांन मागे एका पुरुषाचा हात असतो" किंवा एका पुरुषाने जर एका स्त्री ला आपल्या पेक्षा जास्त ज्ञानी होण्यासाठी उठा ठेप केली समाजाशी भिडून गेला जाती धर्मा सोबत लढला आणि मला तुझ्या सारखी ज्ञानी जीवनसाथी मिळाली म्हणून मी धन्य झालो अस म्हटला तर ते पितृसत्तेच्या थोबाळीत मारण्या सारख होईल. तसेच आनंदी गोपाळ चित्रपटावर लिहीत असतांना चित्रपट निर्माता कोण आहे किंवा चित्रपटात गोपाळराव, आनंदीबाई यांची भूमिका कोणी साकारली हे लिहिण्याचा हेतू मुळीच नाही.       "आनंदी गोपाळ" हा चित्रपट भारताची पहिली महिला डॉक्टर " डॉ. आनंदीबाई गोपाळराव जोशी" यांच्या जीवन चरित्रावर आधारित आहे. या
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भारत की तकलादु शिक्षा नीति ने 10th के छात्र की हत्या की। 94 % गुणों से पास होने वाला छात्र जब आत्महत्या करता है? उस्मानाबाद में देवलाली गाँव से अक्षय शहाजी देवकर इस छात्र ने 10th कक्षा में 94 % अंक हासिल किए लेक़िन उसको आगें की शिक्षा लेने के लिए किसी भी महाविद्यालय में दाखिला नही मिला ओऱ साथ ही किसान के घर से होने की वजह से मुह बोली रक़म नही भर सका तो उस छात्र ने आत्महत्या करना सही समझा. यह घटना में आज सुबह से सोशल मिडियापर सुन/पढ़ रहा हु। इस घटना के साथ आत्महत्या का कारण मराठा आरक्षण न मिलना भी बताया जा रहा है। आज में पहली बार आरक्षण को लेकर कोई बात कहने जा रहा हु। शायद आरक्षण इसका एक कारण हो भी सकता है लेक़िन क्या आरक्षण मिलने के बाद भी यह छात्र आगे जकर इस व्यवस्था में आरक्षण लेकर टिक पाता? मेरी पूछो तो नहीं! उससे अच्छा तो आत्महत्या करना सही है। इसका मतलब यह नही की में आत्महत्या का समर्थन या फ़िर आरक्षण का विरोध कर रहा हु। आरक्षण एक तरह का प्रतिनिधित्व है जो शिक्षा, राजनीति या फ़िर रोज़गार में हर उस जाती को आरक्षण के तहत उस जाती को समुदाय को प्रतिनिधित्व करने का मौका देता है।
विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा? आज दिनांक ३० में २०१९ को भारत के राष्ट्रपति भवन में भारी बहुमत से चुनकर आयी भारतीय जनता पार्टी जिसको मोदी सरकार भी कहा जाता है। उसके नेताओं ने आनेवाले पांच साल के लिए शपथ लिया। इस शपथ में सबसे शुरुआत में यह शपथ होती है कि "विधि द्वारा स्थापित भारत के सविंधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा/रखूंगी" और उस शपथ विधि को भारत के प्रथम नागरिक राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा सम्प्पन किया जा गया। वैसे हम अगर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी की बात करे तो वह एक ऐसे राष्ट्रपति हैं जिनको अछूत होने की वजह से मंदिर में जाने से रोक दिया गया था। सबसे पहले भारतीय सविंधान की मृत्यु तो यहीं पर हो गया था। लेक़िन यह हक़ीक़त है कि उसके विरुद्ध कोई भी आवाज नहीं उठाई जाती। तो हम बात कर रहे थे 'संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा' रखने की, वैसे अगर देखा जाए तो यह भारत के हर नागरिक का कर्तव्य है कि वह भारत के सविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखे। किन्तु व्यवहार में ऐसा होते नहीं दिखाई देता है। लेक़िन जो ल