13 फ़रवरी एक विद्रोही शायर का जन्मदिन
'फ़ैज़ अहमद फ़ैज़'
पिछले कुछ दिनों में फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की एक नज़्म "हम देखंगे" को लेकर देश में जो विवाद हुआ उस विवाद से फ़ैज़ को और फ़ैज़ की नज़्म को ना पसंद करने वाले लोग या फ़ैज़ की उस नज़्म को लेकर राजनतिक करने वाले लोगों ने उस नज़्म को देश के उन आम लोगो तक पहुंचा दिया जीनोन फ़ैज़ का शायद अपनी जिंदगी में कभी नाम तक नहीं सुना हो गा।
लेकिन प्रतिक्रान्ति कभी कभी इतनी मजेदार होती हैं। की ख़ुद प्रतिक्रान्ति की चाहत रखने वालों की वजह से लोगो में क्रांति की मंशा जाग उठती हैं।
ख़ैर फ़ैज़ के जिंदगी में ऐसे कई लोग हो गए जिन्होंने फ़ैज़ के नज़्म के साथ साथ फ़ैज़ का भी विरोध किया हैं। साथ ही कई बार उनकी गिरफ्तारी तक हुवीं हैं। लेकिन फ़ैज़ को ना पसंद करने वालो ने ना उस वक्त यह समझा ना इस वक्त समझ पा रहे हैं कि फ़ैज़ इतने बड़े और इतने पसंद किए जाने वाले शायर हैं। जिनकी नज़्म रूसी तथा अरबी भाषा में प्रकाशित हो चुकी हैं। इतना ही नहीं केवल रूसी भाषा में फ़ैज़ के शायरी की दो लाख दस हज़ार प्रतिया प्रकाशित हो चुकी हैं। साथ ही 1962 ई. में उन्हें लेनिन पुरस्कार भी दिया गया।
फ़ैज़ सिर्फ़ शायर ही नहीं तो शायर के साथ किसान, मजदूर, युवा, महिला आदि के दुखों को बयां करने वाला एक आईना हैं। 15 अगस्त 1947 की जब बटवारे के साथ आजादी मिली तो उस आजादी को अस्वीकार कर 'दाग़दार उजाला' कहकर अपना विरोध दर्ज किया।
फ़ैज़ की शायरी केवल विश्वविद्याल यों के बुद्धिजीवियों एवं ड्राइंग रूम की शोभा के लिए नहीं हैं बल्कि था से निकल कर यह शायरी गली- कूचों, कारखानों, खेतों और खलिहानों में भी फैलती दिखाई देती हैं।
फ़ैज़ की एक नज़्म के साथ फ़ैज़ को जन्मदिन की शुभकामनाएं-
मताए- लौहो - कलम छीन गई तो क्या हम हैं
की खुने - दिल में डुबो ली हैं उंगलियां हमने
जबा पे मोहुर लगी हैं, तो क्या की रख दी हैं
हर एक हल्कए - जंजीर में ज़बा हमने।
तुषार पुष्पदिप सूर्यवंशी

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