दिल्ली_की_मेट्रो_ओऱ_गाँवो_में_बस_की_कमतरता।
आज दिल्ली में दूसरा दिन ओऱ दो दिनों से कईसारी चीजो को जान रहा हु। इस दौरान कल में ओऱ मेरे साथी मेट्रो से जा रहे थे। मस्ती मजा ओऱ कई मुद्दों पर बाते भी हो रही थी उस दौरान एक साथी ने ( नाम बताने की इजाज़त नही लीया हु इस लिए नाम अज्ञात है) युही बोलते बोलते कहा कि पीछले कुछ वर्षों पहले शायद यह घोषणा हुवी थी कि महिलाओं के लिए मेट्रो से यात्रा करना मुफ़्त होगा। शायद इस में हक़ीक़त नही भी हो सकती हैं। क्योंकि उनोने भी इसके बारे में सिर्फ़ सुना था। फिर मैंने उन से कहा कि मेट्रो से यात्रा करना महिलाओं के लिए मुफ़्त हैं भी तो उसका लाभ कोनसी महिलाएं उठाएं गी? उनका वर्ग (क्लास) क्या? होगा, मेट्रो से कोन से वर्ग (क्लास) की महिलाएं यात्रा करती है? यह सारे सवाल हमारे उस भागदौड में लुफ़्त हो गए ओऱ वह साथी उसके आगे बढ़कर कहने लगी कि स्कूल कॉलेज जाने वाली लड़कियों के लिए ही सही बस में मेट्रो में आदि जगहों से यात्रा करना मुफ़्त होना चाहिए। उनका कहना सही था लेक़िन मैंने उससे आगे जाकर कहा कि यह आपका तो सही है। लेक़िन ऐसी कई जगह है कई समुदाय है कई जातियां है कई गांव है जहाँ की लड़कियां/लड़के स्कूल/कॉलेज दूर होने की वजह से स्कूल/कॉलेज नही जा पाती/पाते क्योकि उस गाँव मे ना तो कोई बस जाती हैं। नाही कोई दूसरा वाहन जाता है ओऱ ट्रेन का तो सवाल ही पैदा नही होता। ओऱ फिर उसके बाद जैसे ही हमारा स्टेशन आया मेट्रो के साथ हमारी चर्चा भी रुक गयी। लेक़िन फ़िर आज साथी चंदन सरोज के फेसबुक वॉल पर एक पोस्ट पढ़ने को मिली जो कुछ इस तरह थी।
पोस्ट...
ये तस्वीर #जनपद #अम्बेडकर नगर के एक छोटे से गाँव की है, गाँव में इंटर कॉलेज न होने की वजह से ये बच्चियां खुद रिक्शा चला कर अपने गांव से कई किलोमीटर दूर #टांडा_शहर में सन राइज़ इंटर कॉलेज में पढ़ने जाती हैं...
इस पोस्ट में मुख्यतौर पर गाँव मे इंटर कॉलेज की न होने की समस्या है जो लगभग देश के कई गांवों में है। यह तो इंटर कॉलेज की बात है। कई गाँवो में तो प्रायमरी तक कि शिक्षा उपलब्ध नही है। जो देश की मुख्य समस्याओं में से एक समस्या है लेक़िन कल हमारी दिल्ली में हुवी बातचीत ओऱ आज की यह पोस्ट कूच तो संदेश दे रही है। ख़ुद रिक्षा चलाकर लंबा सफर तय करना बुरा तो है मगर शिक्षा हासिल कर फ़िर किसी दूर गाँव मे शादी ब्याह कर के सालों साल गाँव के बाहर न निकल ना सबसे खतरनाक होता हैं।
तुषार पुष्पदिप..
लोकशाही की हुकूमशाही अलिगढ मध्ये एका शिक्षकाने फेसबुकवर ब्राम्हणवादावर पोस्ट टाकली म्हणून त्या शिक्षकाला पोलिसांच्या समक्ष आमदाराच्या पाया पडून माफी मागावी लागली. गुजरात मधील एका महाविद्यालयात अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषदेच्या कार्यकर्त्यांनी एका प्राध्यापकावर शाही फेकून प्राध्यापकाला मारहाण केली, त्याची मिरवणूक काढण्यात आली. एकीकडे गुरू आणि शिष्याची संस्कृती सांगायची आणि दुसरीकडे शिक्षकाला सत्तेचा माज दाखवत हुकूमशाहीने पाया पडायला भाग पाडायच. प्राध्यापकावर शाई फेकून त्याला मारहाण करणे याला नक्की म्हणावं तरी काय लोकशाही की हुकूमशाही? असा प्रश्न सध्या डोळ्यांसमोर येतो. कारण लोकशाहीला नाकारणारी "हे संविधान आम्हाला मान्य नाही म्हणणारी", "संविधान बदलनेके लिये हम सत्ता मे आये है" बोलणारी यांची विचारधारा जेव्हा संविधानाच्या मार्गाने सत्तेवर येते तेव्हा त्यांच्या कडून फार अपेक्षा करणे मूर्खपणाच ठरत. नुकतच आणीबाणीला ४३ वर्ष पूर्ण झाली. त्या निमित्ताने अपेक्षित असल्याप्रमाणे आमचे आदरणीय प्रधानमंत्री यांनी संधीचा फायदा घेत काँग्रेसवर टिकेचा आसूड सोडला. राजकारणाची पोळी...
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