विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा?
आज दिनांक ३० में २०१९ को भारत के राष्ट्रपति भवन में भारी बहुमत से चुनकर आयी भारतीय जनता पार्टी जिसको मोदी सरकार भी कहा जाता है। उसके नेताओं ने आनेवाले पांच साल के लिए शपथ लिया। इस शपथ में सबसे शुरुआत में यह शपथ होती है कि "विधि द्वारा स्थापित भारत के सविंधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा/रखूंगी" और उस शपथ विधि को भारत के प्रथम नागरिक राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा सम्प्पन किया जा गया। वैसे हम अगर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी की बात करे तो वह एक ऐसे राष्ट्रपति हैं जिनको अछूत होने की वजह से मंदिर में जाने से रोक दिया गया था। सबसे पहले भारतीय सविंधान की मृत्यु तो यहीं पर हो गया था। लेक़िन यह हक़ीक़त है कि उसके विरुद्ध कोई भी आवाज नहीं उठाई जाती। तो हम बात कर रहे थे 'संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा' रखने की, वैसे अगर देखा जाए तो यह भारत के हर नागरिक का कर्तव्य है कि वह भारत के सविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखे। किन्तु व्यवहार में ऐसा होते नहीं दिखाई देता है। लेक़िन जो लोग देश को चलाते है और आवाम से चुनकर जाते हैं उनकी यह पूरी ज़िम्मेवारी होती है कि वह संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखे, लेक़िन यह अपने आपमें एक सवाल है कि क्या सच में अबतक किसी पार्टी ने संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखी है? संविधान की रक्षा की है? संविधान के मूल्य- न्याय, स्वतन्त्रता, समता, बंधुता का पालन किया है? उन मूल्यों को प्रस्थापित करने का प्रयास किया है? अगर इन सारे सवालों का जवाब देना हो तो एक ही जवाब मिलता है। वह जवाब है- नहीं!
सारे संसार में हमारा एकमात्र संविधान ऐसा है जिसके मूल्यों पर नाज किया जा सकता है। लेकिन बी.आर अंबेडकर ने संविधान देते समय ही कहा था कि यह "संविधान तब जाकर सफ़ल हो पायेगा जब उसको चलाने वाले लोग अच्छे होंगे वरना उसको असफ़ल भी वही लोग करेंगे जो उसको चला रहे हैं।" और बिलकुल वैसा ही हमें दिखाई देता है। हम ज्यादा पीछे की नहीं बल्कि पिछले पाँच साल के सरकार की ही बात करेंगे क्योंकि भारत की आवाम सब कुछ बहुत जल्दी भूल जाती है। जैसे कांग्रेस के द्वारा देश मे लगाए गए आपातकाल को भारत की आवाम जल्द ही भूल गयी और फ़िर से एक बार उनको सत्ता में आने का मौका दे दिया गया। अगर हम पिछले साल की सरकार की बात करे, जो कई सारे जुमलों के साथ वह सत्ता में आई थी। लेक़िन यह जुमला था तो उसपर हम बात नहीं करेंगे लेक़िन बात संविधान पर सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखने की है तो इस श्रद्धा और निष्ठा रखने में भारतीय जनता पार्टी और उसकी विचारधारा हर बार असफ़ल रही है। असफ़ल कहना ठीक नहीं होगा क्योंकि असफ़ल वह होते हैं जो सफ़ल होने के लिए प्रयास करते हैं। लेक़िन भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा ही संविधान विरोधी विचारधारा है। स्वतन्त्रता के समय से ही उनका कृत्य संविधान विरोधी कृत्य रहा है, गांधी की हत्या से लेकर आज की डॉ. पायल तड़वी जो निचली जाति से आने की वजह से उसका छल हुआ और उसको आत्महत्या करने को विवश किया गया उस तक। इन सबकी हत्या एक संविधान विरोधी कृत्य है, जो एक विचारधारा से निर्माण होती है। जिसको स्वतंत्रतापूर्व भारत से लेकर आज तक सफल होती दिखाई देती है। इस विचारधारा ने कई सारे नरसंहार करवाए, जिसको यहां दोहराने की ज़रूरत नहीं है। हम सिर्फ़ इस विचारधारा की पिछले पांच साल की बात करेंगे, अगर हम सिर्फ़ पिछले पाँच साल की बात करें तो हमारे आँखों देखे सबकुछ होता रहा, जो संविधान विरोधी था। पिछले पाँच साल में भारतीय जनता पार्टी ने, उसकी विचारधारा ने हमेशा जाति- धर्म के नाम पर राजनीति की और उसकी वज़ह से लोगों में असंतोष निर्माण हुआ। इसके परिणामस्वरूप मॉबलिंचीग हुई। गौ हत्या के नाम पर अख़लाक़, हमीद अन्सारी और अन्य सारे निरपराध आवाम की जानें ले ली गयी। जबकि इनकी ही पार्टी से गोवा के मंत्री कहते हैं कि अगर भारत में कहीं भी गौ मांस की जरूरत होगी तो हम गोवा से भेजेंगे। रोहित वेमुला और अब डॉ. पायल की सांस्थानिक हत्या हुई, साथ ही दलित- आदिवासियों पर हल्ले होते रहे अगर हम विस्तार से देखें तो हमें दिखाई देगा कि किसी दलित दूल्हे ने शादी के समय मंदिर में प्रवेश किया तो पूरे दलित बस्ती को कुछ इस तरह परेशान किया गया कि आधे से ज्यादा दलित गाँव छोड़ने को मजबूर हो गए। यह कोई अकेली घटना नहीं बल्कि ऐसी कई सारी घटनाएं घटती रही और उन सारी घटनाओं पर भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री, जो पार्टी के प्रधानमंत्री है देश के नहीं, चुप्पी साधे रहे।
कभी आम-आवाम पर तो कभी शैक्षणिक संस्थानों पर, तो कभी न्यायालय पर तो कभी सरकारी क्षेत्रों पर, तो कभी युवाओं पर तो कभी महिलाओं पर तो कभी पत्रकारों पर हमले कराए गए और उस सब पर सरकार ने चुप्पी साधते हुए सम्मति दे दी। यही नहीं बल्कि दिल्ली के जंतर-मंतर पर भारतीय संविधान को जलाया गया तब भी प्रधानमंत्री चुप्पी साधे हुए थे और उस संविधान जलाने के कृत्य का समर्थन कर रहे थे। यही नहीं, इनकी ही पार्टी के एक नेता सीधे कहते हैं कि हम संविधान बदलने के लिए ही सत्ता में आए हैं। इसपर भी प्रधानमंत्री चुप्पी साध लेते हैं और कोई कार्रवाई नहीं हुई। इससे भी आगे जाकर २ अक्टूबर २०१९ को दिल्ली में अपनी मांगों को रखने के लिए आये हुए किसानों पर लाठीचार्ज हुआ। गोलियां चलाई गयी एक ऐसे अवसर पर जिस दिन अहिंसा के पुजारी म.गांधी और किसानों के नेता लालबहादुर शास्री का जन्मदिन होता है। उस दिन भारी मात्रा में देश के अन्नदाताओं पर हिंसा हुई, उसपर भी प्रधानमंत्री चुप्पी साधे हुए थे। यही नहीं बल्कि उनकी विचारधारा से ही आई हुई प्रज्ञासिंह ठाकुर दिन-दहाड़े कहती है कि "२६/११ में मारा गया हेमंत करकरे मेरे शाप से मरा और आतंकवादियों ने मेरा बदला लिया।" इस बयान पर प्रधानमंत्री कुछ भी नहीं कहते, बल्कि उसको भोपाल की उम्मीदवारी दी जाती है और वह चुनकर भी आती है। २६/११ मतलब संविधान पर संविधान दिवस पर ही हमला होता है और उसको बचाने के लिए हेमंत करकरे जैसे जवान शहीद होते हैं। उसके बारे में भारतीय जनता पार्टी की उनके विचारधारा की भोपाल की सांसद प्रज्ञासिंह ठाकुर हेमंत करकरे का अपमान कर सविंधान पर हमला करती है, तब भी भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री २०१४ में चुनकर आने के बाद प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते हैं कि भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा लेक़िन इस शपथ को भुलाकर कोई कार्रवाई नहीं करते और फ़िर से एक बार संविधान की मृत्य हो जाती है। २०१९ में फ़िर से एक बार प्रधानमंत्री ईश्वर की शपथ लेते हुए कहते हैं कि संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा।
तुषार पुष्पदिप सूर्यवंशी।
suryawanshitush41@gmail.com
३० में २०१९
लोकशाही की हुकूमशाही अलिगढ मध्ये एका शिक्षकाने फेसबुकवर ब्राम्हणवादावर पोस्ट टाकली म्हणून त्या शिक्षकाला पोलिसांच्या समक्ष आमदाराच्या पाया पडून माफी मागावी लागली. गुजरात मधील एका महाविद्यालयात अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषदेच्या कार्यकर्त्यांनी एका प्राध्यापकावर शाही फेकून प्राध्यापकाला मारहाण केली, त्याची मिरवणूक काढण्यात आली. एकीकडे गुरू आणि शिष्याची संस्कृती सांगायची आणि दुसरीकडे शिक्षकाला सत्तेचा माज दाखवत हुकूमशाहीने पाया पडायला भाग पाडायच. प्राध्यापकावर शाई फेकून त्याला मारहाण करणे याला नक्की म्हणावं तरी काय लोकशाही की हुकूमशाही? असा प्रश्न सध्या डोळ्यांसमोर येतो. कारण लोकशाहीला नाकारणारी "हे संविधान आम्हाला मान्य नाही म्हणणारी", "संविधान बदलनेके लिये हम सत्ता मे आये है" बोलणारी यांची विचारधारा जेव्हा संविधानाच्या मार्गाने सत्तेवर येते तेव्हा त्यांच्या कडून फार अपेक्षा करणे मूर्खपणाच ठरत. नुकतच आणीबाणीला ४३ वर्ष पूर्ण झाली. त्या निमित्ताने अपेक्षित असल्याप्रमाणे आमचे आदरणीय प्रधानमंत्री यांनी संधीचा फायदा घेत काँग्रेसवर टिकेचा आसूड सोडला. राजकारणाची पोळी...
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