प्रशासन के मनमानियों से शक्तितक
मनमानियों से जी नही भरता तब प्रशासन अपनी शक्ति दिखाती है वह भी ऐसे छात्र छात्राओ के ख़िलाफ़ जो लोकतांत्रिक चुनाव लाना चाहती है।
दिनांक 8 सेप्टेंबर 2018 से लेकर आज दिनांक 12 तारीख तक महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के लोकतंत्रपर चलने वाले छात्र करीब साथ दिन से धरना कर रहे है। फिर भी प्रशासन अबतक उनसे बात नही कर रही है। आंदोलनकारीओ को बुलाकर छात्रसंघ बहाल नही कर रही है। आखिर ऐसी क्या बात है जो प्रशासन छात्रसंघ को बहाल करना नही चाहती क्यो डरती है आखिर छात्र संघ से प्रशासन। और छात्रसंघ होता किस लिए है जबभी प्रशासन के मन से प्रतिनिधि चुनकर जाता है तब ओ प्रशासन का प्रतिनिधि होता है। छात्र छात्राओं का नही फिर छात्र छात्राओं के हक्क के लिए उनकी बातों को रखने के लिए दिक्कत होती है। तब जरूरत होती है छात्रसंघ की। जिसका काम होता है छात्र छात्राओं की समस्या को समजना। उनको प्रशासन के सामने रखना और उसको लागू करवाना। और वह काम तब होता है जब किसी विश्वविद्यालय का प्रतिनिधि छात्र छात्राओ के चुनाव से चुनकर जाता है। इस सारी प्रक्रिया को लागू करने के लिए कई छात्र धरना कर रहे है। जगह जगह पर सभा लेकर छात्राओं को जागरूक करने की पूरी कोशिश कर रहे है। लेकिन कम्बक्त हमारे देश मे राजनीति और चुनाव को लेकर लोगो मे बडी उदासीनता है। जिसका फायदा सरपंच से लेकर विधानसभा और लोकसभा में जानेवाले लोग लेते है।
शाहिर संभाजी भगत उसके उपर कहते है।
कोई दिल्ली में बैठा है भाई।
कोई मुंबई में बैठा है भाई।
कोई संसद में बैठा है भाई।
विधान सभा मे बैठा है भाई।
हम वोटिंग करते है भाई वो एक्टिंग करते है भाई
बस ऐसी ही स्थिति हमारे देश की है बदनाम राजनीति की वजह से लोग राजनीति से दूर ही रहना चाहते है। डरते है और कहते भी है कि राजनीति अपना काम नही है। अच्छे लोगो का काम नही है। अगर कोई राजनीति नही करेगा तो लोकतंत्र का मतलब ही क्या? लोगो के अधिकारों का क्या? उनके समस्या ओ का क्या? कोन बोलेगा उनपर? कोन लड़ेगा? अगर ऐसा ही चलता रहा तो एकदिन लोकशाही खत्म होकर हुक़ूमशाही आनेमे जादा देर नही लगेगी।
बस कुछ ऐसा ही विश्वविद्यालय में हो रहा है सारे छात्र छात्राए राजनीति से बड़ी दूर भाग रहे है। नही करना चाहते है ऐसी राजनीति जिससे उनके हक्क की बात हो। जब हम छात्रसंघ चुनाव जागरूकता के लिए महिला छात्रावास जो उनके नाम से बना है जिनकी वजह से महिला पढ़ पा रही है। जिनोने अपना पूरा जीवन महिलाओं को शिक्षित करने में लगा ओ नाम है सावित्रीमाई फुले और शर्म की बात यह है कि उस सभा के दौरान एक भी लड़की हमारे साथ नही आई नही हमारी बात किसीने सुनी बस कुछ चार या पाँच लड़किया हमारे सामने आई और बाकी सारी बैठी थी अपने कमरे में जिनको सावित्रीमाई फुले ने समाज के मुख्य धारा में लाया जिनको अपना शिक्षा का अधिकार दिया राजनीति करना सिखाया और आज कोई भी लड़की राजनीति में आना नही चाहती है अगर कोई आता भी है या कोई आ भी जाए तो उनके सारे कामकाज उनके पति यानी पुरुष ही देखते है। उसके बारे में बताने की मुजे अलग से जरूरत नही है। वैसे देखा जाए तो उनको ये भी हक़ है कि वो राजनीति में आये या ना आये या अपने कमरे में बैठे रहे। उससे उलटा पुरुषों की कुछ अलग स्थिति नही है हम जिन लडकोके छात्रावास में गए उन छात्रावास का नाम ही एक राजनीति है। भगतसिंग छात्रावास, सुखदेव छात्रवास बिरसामुंडा और ग़ौरखपाण्डे छात्रावास वहां भी ऐसी है कुछ स्थिति है। वहां के छात्र भी राजनीति से दूर भागना चाहते है थोड़े बोहोत है जो आना चाहते है और आगये है लेकिन जबतक हर एक छात्र इस आंदोलन से नही जुड़ जाता तबतक राजनीति में बदलाव नही आएगा और छात्रसंघ बहाल नही होगा। में बताना ये चाहता हु कि राजनीति-चुनाव इतना बदनाम हो चुका है कि कोई नही जुड़ना चाहता है और कोई नही चाहता है कि हम इस आंदोलन से जुड़े और छात्रसंघ बहाल हो। इसीका फायदा लेकर प्रशासन मनमानी करती है बात नही करती प्रस्ताव नही लेती और मनमानियों से जी नही भरता तब अपनी शक्ति दिखाकर आंदोलनकारियों को उठाकर प्रशासन के बाहर फेंक देती है।
छात्रसंघ बहाल करो
लोकतंत्र बचाओ।
तुषार पुष्पदिप सूर्यवंशी.
9503521235
दिल्ली_की_मेट्रो_ओऱ_गाँवो_में_बस_की_कमतरता। आज दिल्ली में दूसरा दिन ओऱ दो दिनों से कईसारी चीजो को जान रहा हु। इस दौरान कल में ओऱ मेरे साथी मेट्रो से जा रहे थे। मस्ती मजा ओऱ कई मुद्दों पर बाते भी हो रही थी उस दौरान एक साथी ने ( नाम बताने की इजाज़त नही लीया हु इस लिए नाम अज्ञात है) युही बोलते बोलते कहा कि पीछले कुछ वर्षों पहले शायद यह घोषणा हुवी थी कि महिलाओं के लिए मेट्रो से यात्रा करना मुफ़्त होगा। शायद इस में हक़ीक़त नही भी हो सकती हैं। क्योंकि उनोने भी इसके बारे में सिर्फ़ सुना था। फिर मैंने उन से कहा कि मेट्रो से यात्रा करना महिलाओं के लिए मुफ़्त हैं भी तो उसका लाभ कोनसी महिलाएं उठाएं गी? उनका वर्ग (क्लास) क्या? होगा, मेट्रो से कोन से वर्ग (क्लास) की महिलाएं यात्रा करती है? यह सारे सवाल हमारे उस भागदौड में लुफ़्त हो गए ओऱ वह साथी उसके आगे बढ़कर कहने लगी कि स्कूल कॉलेज जाने वाली लड़कियों के लिए ही सही बस में मेट्रो में आदि जगहों से यात्रा करना मुफ़्त होना चाहिए। उनका कहना सही था लेक़िन मैंने उससे आगे जाकर कहा कि यह आपका तो सही है। लेक़िन ऐसी कई जगह है कई समुदाय है कई जातियां है कई गांव है जहाँ ...
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