
आंदोलन की समाप्ति। दिनांक 7 अक्तूबर के शाम की ओ बात है जब में मेरी दोस्त को वर्धा स्टेशन को छोड़ के वापस विश्वविद्यालय आ रहा था। तब रास्ते मे मुजे एक अपाहिज युवा ने हात दिया और आगेतक आनेकी मदत मांगी मैने बे झिझक उसको अपनी गाड़ी पर बिठा लिया। थोड़ी देर बात उसने मुजसे बात की ओ बोला भैया कुछ काम होंगा तो बोलना! में जल्दी में था इसलिए मैंने ध्यान नही दिया लेकिन पोहोचने में टाइम था इसलिए मैंने भी उस्से वार्तालाप शुरू कर दिया। शुरवात में तो मैंने ये कहकर बात टाल दी कि में यहां का रहनेवाला नही हु। फिर भी अगर होता है तो में आपको कहदूँगा। ये कहकर मैं शांत हो गया फिर वो बोला में दसवीं कक्षा तक ही पढ़ा हु सब काम कर लेता हूं। यही रहता हूं वर्धा में फिर मेने अपना मौन खोला जैसे हमारे देश की राजनीति जब चाहे खोल देती है जब चाहे मौन कर लेती है। मैंने बड़े स्वाभिमान भरे शब्दो मे कहा पेट्रोलपंप पर देख लेना शायद मिल जाएगा। उसके पास मोबाइल तक नही था मैंने अपना मोबाईल नंबर उसे एक कार्डपर लिखकर दे दिया और कहा कि मेरे छात्रावास के रूम न. 26 में आकर मिलना में पूछता हूं अपने दोस्त से। मैने वैसे ही उसे आश्वाशन दे द...